Wednesday, July 23, 2025

जल गंगा संवर्धन अभियान: श्योपुर की प्राचीन बावड़ियों को मिला नवजीवन, 5 जून को होगा “बावड़ी उत्सव”

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श्योपुर, 03 जून 2025।
श्योपुर जिले में जल संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक पहल करते हुए “जल गंगा संवर्धन अभियान” के अंतर्गत प्राचीन बावड़ियों के जीर्णोद्धार और संरक्षण का कार्य तेजी से किया जा रहा है। कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट अर्पित वर्मा के मार्गदर्शन में इस अभियान ने जिले की जल धरोहरों को नवजीवन देने का कार्य किया है।

मनरेगा योजना के अंतर्गत इन बावड़ियों की सफाई, झाड़-झंखाड़ हटाना, मिट्टी निकालना, रंग-रोगन कर उन्हें फिर से उपयोगी और आकर्षक बनाया जा रहा है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप जिले की कई ऐतिहासिक बावड़ियाँ आज फिर से आम जनमानस के आकर्षण का केंद्र बन रही हैं।

5 जून को ‘बावड़ी उत्सव’ का आयोजन

जल गंगा संवर्धन अभियान की सफलता का उत्सव 5 जून को “बावड़ी उत्सव” के रूप में मनाया जाएगा। यह आयोजन सायंकाल ग्राम रायपुरा स्थित ऐतिहासिक बावड़ी पर किया जाएगा।

जिला पंचायत के सीईओ अतेन्द्र सिंह गुर्जर ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों की कुल 24 और शहरी क्षेत्रों की 17 बावड़ियों का चयन जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए किया गया है। उन्होंने बताया कि अगरा-मदनपुर, पहेला, खिरखिरी, बावड़ीचापा, बरदुला, बर्धा बुजुर्ग, सोईकला, जैदा, गुरनावदा, फिलोजपुरा, ननावद, रतोदन, रायपुरा, और अजापुरा सहित अन्य गांवों में यह कार्य जारी है।

शहर की ऐतिहासिक बावड़ियां भी बनीं मिशन का हिस्सा

शहरी क्षेत्र में स्थित राजा मनोहरदास की बावड़ी, सब्जी मंडी बावड़ी, शीतला माता बावड़ी, बीबीजी की बावड़ी, सोहन बावड़ी, शिव बावड़ी, बड़ौदा कुंड सहित कुल 17 बावड़ियां इस अभियान के तहत सूचीबद्ध की गई हैं। इनके जीर्णोद्धार से न केवल वर्षाजल का संग्रहण होगा, बल्कि भूजल स्तर में भी वृद्धि की संभावना जताई गई है।

इतिहास से जुड़ीं हैं ये बावड़ियाँ

श्योपुर जिले की बावड़ियाँ न केवल जल संरक्षण का साधन रही हैं, बल्कि ये ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक हैं। अधिकांश बावड़ियाँ 16वीं-17वीं शताब्दी की हैं और वास्तुशिल्प की दृष्टि से “नंदा” शैली की मानी जाती हैं। इनमें एक ही रास्ते से प्रवेश और निकास होता है।

ग्राम रायपुरा की बावड़ी, जिसका निर्माण सन् 1734 में गोंड राजा इंदर सिंह के दीवान श्री शिवनाथ जी कायस्थ ने कराया था, आज भी ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक बनी हुई है। वहीं बर्धा बुजुर्ग और सोईकला गांव की बावड़ियाँ भी गौड़ राजाओं की स्थापत्य कला का प्रमाण हैं।

स्थानीय प्रशासन की ऐतिहासिक पहल

मनरेगा परियोजना अधिकारी  विक्रम जाट ने बताया कि अभियान के तहत न सिर्फ बावड़ियों की साफ-सफाई की जा रही है, बल्कि उन्हें सौंदर्यीकृत कर पुनः सामुदायिक उपयोग के लिए तैयार किया जा रहा है। ग्रामीणों में भी इन बावड़ियों को लेकर नई चेतना और जागरूकता देखी जा रही है।

निष्कर्ष: पुनर्जीवन की ओर प्राचीन जल धरोहरें

“जल गंगा संवर्धन अभियान” श्योपुर जिले के लिए न केवल जल संरक्षण का प्रयास है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का संगम भी है। 5 जून को होने वाला “बावड़ी उत्सव” इस जन-जागरूकता और प्रशासनिक संकल्प का प्रतीक बनेगा।

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