Saturday, June 7, 2025

“बचपन को मिली छत: प्रशासन की पहल से चार अनाथ बच्चों को मिला नया आशियाना”

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श्योपुर, 19 मई 2025
जिला प्रशासन की संवेदनशीलता और मानवीय पहल एक बार फिर मिसाल बनी, जब ग्राम रायपुरा के चार निराश्रित बच्चों को न सिर्फ नया घर मिला बल्कि उनके जीवन को संवारने की दिशा में ठोस कदम भी उठाए गए।

आज रायपुरा में आयोजित एक भावनात्मक और उत्सवपूर्ण कार्यक्रम में इन चार बच्चों को उनके नए पक्के घर में गृह प्रवेश कराया गया। कार्यक्रम में जिले के पूर्व कलेक्टर श्री संजय कुमार और वर्तमान कलेक्टर श्री अर्पित वर्मा ने विधिवत पूजा-अर्चना, अखंड रामायण पाठ और कन्या भोजन के साथ गृह प्रवेश कराया।

जनसुनवाई में छलका था दर्द, प्रशासन बना सहारा

यह कहानी तब शुरू हुई जब दो साल पहले 13 वर्षीय तनू पारिक अपनी दो छोटी बहनों तनिष्का और उन्नती तथा 5 साल के भाई पार्थ के साथ जनसुनवाई में पहुंची थी। जयपुर में पिता द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद वे अपनी मां स्व. श्रीमती पूजा पारिक के साथ रह रहे थे, जिनका कुछ समय पूर्व निधन हो गया। इसके बाद तनू की मौसी श्रीमती माया मीणा ने बच्चों को रायपुरा लाकर अपने पास रखा।

जनसुनवाई में मासूम तनू की आंखों से छलकते आंसुओं ने प्रशासन का दिल छू लिया। तत्कालीन कलेक्टर श्री संजय कुमार ने बच्ची को ढांढस बंधाया और आश्वस्त किया कि शासन-प्रशासन उनका पूरा ध्यान रखेगा।

योजनाओं से जोड़ा, मिला सम्मानजनक जीवन

बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए प्रशासन ने महिला एवं बाल विकास विभाग की स्पॉन्सरशिप योजना में नाम दर्ज कराया, जिससे उन्हें प्रतिमाह 4-4 हजार रुपये की सहायता मिलने लगी। साथ ही बीपीएल सूची में नाम जोड़कर विभिन्न योजनाओं का लाभ भी सुनिश्चित किया गया।

समाजसेवी आगे आए, बना पक्का मकान

प्रशासन की प्रेरणा से श्योपुर के प्रतिष्ठित समाजसेवी व व्यवसायी कुंजबिहारी सर्राफ ने बच्चों के लिए 900 वर्गफीट भूमि पर एक सर्वसुविधायुक्त पक्का मकान बनवाया। आज उसी मकान का गृह प्रवेश उत्सवपूर्वक संपन्न हुआ।

उपहारों के साथ मिला नया जीवन

गृह प्रवेश के मौके पर बच्चों को प्रशासन की ओर से उपहार भी भेंट किए गए। इस अवसर पर एसडीएम  बीएस श्रीवास्तव, एसडीओपी  राजीव गुप्ता, महिला बाल विकास अधिकारी  ओपी पाण्डेय, सहायक संचालक  रिशु सुमन, समाजसेवी  अशोक सर्राफ,  सतीश समाधिया,  अंकुर शर्मा समेत अनेक अधिकारी और ग्रामीणजन उपस्थित रहे।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि जब प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सामाजिक सहयोग एक साथ आते हैं, तो ज़रूरतमंदों की ज़िंदगी भी बदल सकती है।

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