संभल में हर साल होली के दूसरे मंगलवार को आयोजित होने वाले नेजा मेले को लेकर इस बार बड़ा विवाद खड़ा हो गया है|
प्रशासन ने इसे ‘देशद्रोह’ करार देते हुए रोक लगा दी, जिसके बाद मेले की आयोजन समिति और प्रशासन आमने-सामने हैं | यह मेला सैयद सालार मसूद गाजी की याद में आयोजित किया जाता है, जिनका नाम भारतीय इतिहास में विवादित व्यक्तित्वों में शुमार है. प्रशासन का तर्क है कि सालार मसूद गाजी एक विदेशी आक्रमणकारी थे, जिन्होंने भारत में लूटपाट की थी, जबकि आयोजकों का कहना है कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए|
यह विवाद केवल कानूनी या प्रशासनिक नहीं है, बल्कि इसका गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य भी है. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि इस मामले को ऐतिहासिक घटनाओं के आईने में देखा जाए |
प्रशासन का कहना है कि आक्रमणकारियों की याद में आयोजन नहीं होना चाहिए.
आयोजन समिति इसे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा बताकर बचाने की कोशिश कर रही है|
नेजा मेले की ऐतिहासिक जड़ें
संभल जिला जिसका इतिहास 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जाता है, अनेक राजवंशों और शासकों के अधीन रहा. लोधी और मुगल काल से लेकर अशोक साम्राज्य तक इसका प्रभाव बना रहा. लेकिन सबसे चर्चित ऐतिहासिक घटनाओं में से एक 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान और सालार मसूद गाजी के बीच हुए युद्ध को माना जाता है. संभल जिले की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सालार मसूद गाजी के खिलाफ यहां दो भीषण युद्ध लड़े थे. पहले युद्ध में चौहान की जीत हुई थी, जबकि दूसरे युद्ध में सालार मसूद को बढ़त मिली थी. हालांकि, इन युद्धों के प्रमाण ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं और इन्हें लोककथाओं के रूप में देखा जाता है|
मसूद गाजी और पृथ्वीराज चौहान के युद्ध का वर्णन
इतिहासकार बृजेंद्र मोहन शंखधर की किताब Sambhal: A Historical Survey में इस युद्ध का विस्तार से वर्णन मिलता है. इसके पेज नंबर 9 और 10 पर छपी जानकारी का हिंदी अनुवाद यहां आगे दिया गया है. किताब में लिखा है- “पृथ्वीराज चौहान के संभल में रहने के दौरान, एक दिलचस्प कथा जुड़ी हुई है, जिसे संक्षेप में इस प्रकार बताया जाता है: सैयद पचासे नामक व्यक्ति, जिनकी कब्र मोहल्ला नाला कुस्साबान में है | संभल के किले के भीतर रहते थे. उनकी एक अत्यंत सुंदर कन्या थी, एक दिन संयोगवश राजघराने के एक राजकुमार ने उस लड़की को देखा और उसके प्रति आकर्षित हो गया. सैयद पचासे इस घटना से आक्रोशित होकर तुरंत गजनी पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई. इस पर सुल्तान मसूद की बहन का बेटे सैयद मसूद गाजी ने एक विशाल सेना के साथ मुल्तान, मेरठ और पुरनपुर (अमरोहा) होते हुए संभल पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में दोनों ओर से हजारों सैनिक मारे गए |
किताब के मुताबिक अंततः संभल के किले पर कब्जा कर लिया गया और पृथ्वीराज चौहान को मैदान छोड़ने पड़ा. कहा जाता है कि अहमद और महमूद, जिनकी कब्रें किले के कुमायूं गेट की पूर्वी दीवार से सटी हुई हैं, इस किले में प्रवेश करने वाले पहले शख्स थे ये दोनों पृथ्वीराज के पुत्र के साथ युद्ध करते हुए मारे गए. यह भी माना जाता है कि संभल की ओर बढ़ते समय जहां-जहां सालार मसूद गाजी ने डेरा डाला, वहां आज भी मेले आयोजित किए जाते हैं. इनमें मेरठ का नौचंदी मेला, पुरनपुर (अमरोहा) का नेजा मेला, थमला और संभल के मेले प्रमुख हैं. इसके अलावा, कई अन्य स्थानों पर उर्स भी मनाए जाते हैं |
वैसे इस किताब में यह भी लिखा है कि, हालांकि, इस घटना के ऐतिहासिक प्रमाणों पर पूरी तरह भरोसा करना कठिन है, क्योंकि इनमें कुछ प्रमाणिकता की कमी है. फिर भी, इन्हें पूरी तरह कल्पना कहकर खारिज करना भी उचित नहीं होगा. संभल में आज भी बड़ी संख्या में मकबरे, कब्रिस्तान और अन्य पुरानी संरचनाएं हैं, जिनका गहन अध्ययन किया जाना आवश्यक है|
यह उल्लेखनीय है कि पृथ्वीराज चौहान द्वारा सालार मसूद गाजी पर संभल में विजय प्राप्त करने की स्मृति में ‘ध्वजा उत्सव’ (Dwaja Festival) प्रतिवर्ष मनाया जाता है. इसमें हजारों पुरुष और महिलाएं भाग लेते हैं और झंडे लेकर ढोल-नगाड़ों की ध्वनि के बीच नृत्य करते हैं. यह उत्सव होली के अगले दिन चैत्र मास में आयोजित होता है. इसके तुरंत बाद, सालार मसूद गाजी की अंतिम विजय की स्मृति में ‘नेजा मेला’ आयोजित किया जाता है. यह मेला होली के बाद के पहले मंगलवार को आयोजित होता है. किताब के मुताबिक संभल के किले को जीतने के बाद, सालार मसूद गाजी बहराइच की ओर चला गया, जहां एक और युद्ध में मारा गया|
आपको बता दें कि बृजेंद्र मोहन शंखधर की किताब Sambhal: A Historical Survey 1971 में प्रकाशित हुई थी. यह किताब यूनिवर्सिटी ऑफ कालिकट की वेबसाइट के लाइब्रेरी कैटेलॉग के रिकॉर्ड में मेंशन भी है. इसे यहां क्लिक कर देखा जा सकता है|
अगर आप इस किताब को पढ़ना चाहते हैं, तो यह इंटरनेट आर्काइव पर मौजूद है. इसे यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है| https://find.uoc.ac.in/Record/365199
क्या होता है नेजा का मतलब?
रेख्ता के अनुसार, नेजा का अर्थ (भाला, बल्लम, कुंत, शंकु, बरछी, कलम का नरकट, एक किस्म का बांस जो सीरिया में पैदा होता है) होता है |
प्रशासन की सख्ती और नेजा मेले पर विवाद
नेजा मेले की परंपरा के अनुसार, यह आयोजन एक 30 फीट ऊंचे पोल (ढाल) को गाड़ने से शुरू होता है, जिसके शीर्ष पर हरा झंडा लगाया जाता है. यह आयोजन इस्लामी योद्धा सैयद सालार मसूद गाजी की याद में किया जाता है, जिनकी कब्र बहराइच में स्थित है. लेकिन इस साल प्रशासन ने इस मेले को आयोजित करने से साफ इनकार कर दिया. पुलिस प्रशासन का कहना है कि सालार मसूद गाजी भारत पर हमला करने वाले महमूद गजनवी के भांजे थे और उन्होंने सोमनाथ मंदिर सहित कई हिंदू मंदिरों को लूटा था |
संभल के एएसपी श्रीशचंद्र ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “सोमनाथ मंदिर और हजारों हिंदू मंदिरों को लूटने वाले हमलावर के नाम पर किसी मेले का आयोजन नहीं होगा. जो भी इस लुटेरे के नाम पर आयोजन करेगा, वह भी अपराधी है. यह एक गलत परंपरा थी, जिसे अब खत्म किया जाएगा.” हालांकि, नेजा मेला कमेटी के अध्यक्ष शाहिद हुसैन मसूदी ने प्रशासन के इस कदम का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि, “यह आयोजन सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है. हमने 10 दिन पहले ही प्रशासन को सूचना दी थी, लेकिन अचानक इसे रोक दिया गया. हम इस मामले को उच्च अधिकारियों तक ले जाएंगे |
नेजा मेले की ऐतिहासिक प्रासंगिकता और वर्तमान बहस
नेजा मेला एक ऐतिहासिक लोक परंपरा रही है, जो समय के साथ धार्मिक और सामाजिक पहचान से जुड़ गई. लेकिन प्रशासन द्वारा इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय इस सवाल को जन्म देता है कि क्या किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम पर आयोजित परंपरा को बंद किया जाना चाहिए, यदि वह आक्रमणकारी माना जाता हो? भारत में इतिहास को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण रहे हैं. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, सालार मसूद गाजी एक धार्मिक योद्धा थे, जिनका प्रभाव भारत के उत्तर क्षेत्र में रहा. वहीं, दूसरी दृष्टि से उन्हें एक आक्रमणकारी के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने भारतीय साम्राज्यों पर हमले किए|
संभल में नेजा मेले को रोके जाने का निर्णय केवल एक मेले की अनुमति से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह इतिहास और परंपरा बनाम प्रशासनिक फैसले का मुद्दा बन चुका है|
संभल का यह विवाद इतिहास, परंपरा, प्रशासनिक निर्णय और सांप्रदायिक भावनाओं के बीच एक जटिल मुद्दा बन चुका है. प्रशासन इसे भारत विरोधी परंपरा के रूप में देख रहा है, जबकि आयोजक इसे धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा मानते हैं|
यह मामला भविष्य में भी इतिहास और परंपरा पर उठने वाले सवालों का केंद्र बना रह सकता है सवाल यह है कि क्या ऐतिहासिक परंपराओं को आज के नजरिए से परखा जाना चाहिए| या फिर उन्हें सिर्फ परंपरा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए
इतिहासकारों के मत भी बंटे हुए हैं – कुछ इसे ऐतिहासिक परंपरा मानते हैं तो कुछ इसे लोककथाओं का हिस्सा बताते हैं.
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