श्योपुर दिनांक 25 12 24
श्योपुर जिले के जाट समाज ने भरतपुर के महाराजा सूरजमल का बलिदान दिवस 25 दिसंबर को ट्रैक्टर रैली निकालकर मनाया जिसमे ट्रेक्टर, कार, जीप, मोटरसायकिल,लेकर युवा भरी संख्या में शामिल हुए जो बंजारा डैम से शुरू होकर टोड़ी गणेश जी मन्दिर होते हुए मेन बाजार से होकर गुजरा जहां सभी सामाजिक व राजनीतिक बंधुओ ने पांडाल लगाकर बाजार में कई जगह महाराजा सूरजमल की प्रतिमा पर पुष्प हार पहना कर श्रद्धांजलि दे कर स्वागत सत्कार किया
भारी संख्या में ट्रैक्टर मार्च के बीच मुख्य अतिथि राजस्थान जयपुर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष निर्मल चौधरी ने भी भाग लिया और उन्होंने कहा कि युवाओं को सूरजमल जी से प्रेरणा लेनी चाहिए महाराजा सूरजमल ने जिस तरह देश हित का कार्य किया है युवाओं को भी यह प्रण लेना चाहिए कि हम भी दूसरों की भलाई का कार्य करेंगे किसानों के मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सरकार निर्दयी हो गई है और किसानों पर अन्याय और अत्याचार कर रही है किसान देश का पेट पालता है उन्हीं के साथ अन्याय हो रहा है और हम सभी साथी किसान कोम के साथ है
महाराजा सूरजमल का जीवन ओर उनकी घटनाएं कुछ इस तरह रही उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था और वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे।
10 मई को महाराजा सूरजमल जाट जी ने 1753 में दिल्ली पर विजय प्राप्त की थी। महाराजा सूरजमल जाट जी ने वैसे तो दिल्ली पर दो बार विजय हांसिल की थी। 1763 में भी दिल्ली पर भगवा ध्वज लहराया।
1752 में हस्ताक्षरित एक संधि ने मराठों को दिल्ली में मुगल सिंहासन का रक्षक बना दिया। 1753 में जाट शासक सूरजमल ने दिल्ली पर हमला किया। उसने दिल्ली के नवाब गाजी-उद-दीन (द्वितीय) को हराया और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया।
हाराजा सूरजमल ने एक ब्राह्मण की बेटी हरदौल की इज़्ज़त बचाने के लिए दिल्ली के बादशाह अहमदशाह से बात की थी. इस कहानी के बारे में ज़्यादा जानकारीः
जब मोहम्मद शाह ने एक ब्राह्मण की बेटी को कैद कर लिया, तो उसने शाह से निकाह करने की बात कही.
ब्राह्मण की बेटी ने चतुराई दिखाते हुए कहा कि उसका चार महीने का व्रत है, उसके बाद वह हर फ़ैसला मानेगी.
एक दिन जब सफ़ाई करने वाली महिला युवती के कमरे के पास आई, तो उसने पेन और कागज़ मंगाया.
युवती ने महाराजा सूरजमल को भाई कहकर पत्र लिखा और अपनी इज़्ज़त बचाने की गुज़ारिश की.
महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के बादशाह अहमदशाह से कहा कि या तो हरदौल को छोड़ें या फिर दिल्ली छोड़ें.
अहमदशाह ने सूरजमल से कहा कि जाटनी भी साथ ले आएं, पंडितानी तो क्या छुड़वाएगा वह हमसे.
जब एक ब्राह्मण की बेटी हरदौल को (उसकी माँ की पुकार पर) कैद से छोड़ने हेतु, महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के बादशाह अहमदशाह को कहलवाया कि, “या तो हरदौल को छोड़, वर्ना दिल्ली छोड़!”
अहमदशाह ने उल्टा संदेशा भेजा, “सूरजमल से कहना कि जाटनी भी साथ ले आये, पंडितानी तो क्या छुड़वाएगा वो हमसे!
“इस पर लोहागढ के राजदूत वीरपाल गुर्जर वहीँ बिफर पड़े और वीरगति को प्राप्त होते-होते कह गए, “तू तो क्या जाटनी लैगो, पर तेरी नानी याद दिला जायेगो, वो पूत जाटनी को जायो है।
“इस पर सूरजमल महाराज ललकार उठे, “अरे आवें हो लोहागढ़ के जाट, और दिल्ली की हिलादो चूल और पाट!
“और जा गुड़गांव में डाल डेरा बादशाह को संदेश पहुँचाया, “बादशाह को कहो जाट सूरमे आये हैं अपनी बेटी की इज्जत बचाने को, और साथ में जाटनी (महारानी हिण्डौली) को भी लाये हैं, अब देखें वो जाटनी ले जाता है या हमारी बेटी को वापिस देने खुद घुटनों के बल आता है।”और महाराजा सूरजमल का कहर ऐसा अफ़लातून बन कर टूटा मुग़ल सेना पर कि मुग़ल कह उठे:
तीर चलें, तलवारें चलें, चलें कटारें इशारों तैं, अल्लाह मियां भी बचा नहीं सकदा, जाट भरतपुर आळे तैं।
और इस प्रकार ब्राह्मण की बेटी भी वापिस करी और एक महीने तक जाट महाराज की मेहमानवाजी भी करी।
वीरभूमि भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल अमर रहें !!
जाट वीरो की आज एक ऐसी कहानी आपके बीच लिख रहा हुँ जिसके कारण लोहागढ नरेश महाराजा सूरजमल जाट अफलातुन कहलाए…
जब दिल्ली पर मुगल बादशाह अहमदशाह का राज था
बादशाह के दरबार मेँ एक पंडित रहता था
पंडित कि पत्नी रोज पंडित को खाना ले जाति थी…एक दिन पंडित कि बेटि हरजोत कौर अपने पिता को खाना लेके गई
हरजोत जब वापस घर चली गई तो बादशाह ने पंडित को पूछा तेरी बेटी है क्या ये
पंडित बोला हाँ,तो बादशाह बोला तुने अब तक ये बात हमसे छुपाई कोई बात नि
पर सुन हरजोत हमारे दिल को छू गई मै उसे अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ
पंडित बोला हुजूर दया करो ऐसा मत सोचो आप कि बेटी है
बादशाह बोला बेटी थी पंडित पर अब कुछ अलग है
पंडित गिडगिडाने लगा और बादशाह के पैरोँ मेँ गिर गया लेकिन पत्थर दिल मेँ दया कहाँ बादशाह बोला सुन सात दिन मेँ हरजोत का डोला ले लिया जाएगा….
पंडित रात को घर पहुंचा और चिंता कि लखिरि माथे पर लेके बैठ गए तो पंडितानी और बेटी ने पूछा तो पंडित कि आँखोँ से आंसुओँ कि धार तो हरदौल बोली पिताजी जो हुआ है बताओ तो पंडित ने सारा दुखडा बेटी को रो दिया
बेटी बोली पिताजी मेँ र्धम ना बदलूंगी चाहे जान चली जाए
पंडित पंडितानी को रोते 2 रात निकल गई सुबह बादशाह के सैनिकोँ ने पंडित के घर को छावनि बना दिया और बादशाह ने आदेश दिया कि पंडित फालतु बोले तो घर मे आग लगा देना तो एक सैनिक ने बादशाह शलाह दि कि आग लगाने से फायदा नाए हरजोत को जेल मेँ डाल दिया जाए और मारपीट खा के राजी हॅ जाएगी तो बादशाह ने हरदौल को जेल मेँ डलवा दिया और यातनाए दि जाने लगी तो दूसरे दिन एक भंगी हरिजन कि औरत जो कि महल मेँ झाडु लगाने आति थी वो छुप के हरदौल से मिली
जिस वक्त कि ये घटना थी तब दिल्ली के आसपास कोई भी राजा लडने को तैयार ना था तो भाइयो उस औरत ने हरजोत को बताया कि बेटि कोइ भी तेरि सहायता ना है हिन्दुओ मे बस एक सक्श है वो लोहागढ का राजा सूरजमल जो जाट का पूत है तू उसको पत्र लिख तेरी जरुर सुनेगा जाट वीर.
जेल मे कलम ना थी तो भंगी औरत एक मोर के पंख का टुकडा लाई और हरजोत ने अपने खून से पत्र लिखा लिखते2 आंसु भी पत्र पर गिर गए थे
और औरत को अपने घर का पता बताके पत्र उसको सोँप दिया और भंगि औरत ने पत्र पंडित को दिया और कहा जाओ लोहागढ और अपनी बेटी कि इज्जत के रक्षक को ये पत्र पहुँचाओ
जहाँ हर फरियादि कि फरियाद सुनी जाती है जाट दरबार मेँ आपकि भी सुनी जाएगी
तो पंडितानि पत्र को लेके जाट दरबार मेँ पहुँच जाती है पत्र मेँ वो मोर का पंख भी रखा था
जाट दरबार सजा हुआ था और पंडितानी दहाड मार2 के रोने लगी
तो सुरजमल बोले कौन है ये दुखिया इसकि फरियाद सुनो तो पत्र पढके राजा को सुनाया गया
तो सूरजमल ने कहा बस पंडितानि तु वापस दिल्ली जा और उसके साथ एक वीरपाल नाम के गुजजर सैनिक भेजा और कहा कि बादशाह को कहना कि या तो हरजोत को छोड या दिल्ली छोड…
तो वीरपाल गुज्जर मुगल दरबार मेँ पहुचा और बादशाह को सूरजमल का आदेश सुनाया तो बादशाह हंसते हुए कहता है कि हमेँ मालुम था कि सूरजमल जरुर हमसे पंगा लेगा
ठीक है सुनो वीरपाल — सूरजमल से कहना कि जाटनी भी साथ लाए पंडितानि क्या छुडाएगा वो…
बस फिर क्या था वीरपाल ने दरवार मेँ तलवार का कहर छोड दिया मुगलोँ से लडते2 वीरगति को र्पाप्त हो गया
लेकिन एक बात कह के गया था वीरपाल कि”°°तूतो का जाटनी लेगौ पर तेरी नानी याद दिला जाएगौ वो पूत जाटनी कौ जायौ है
जब ये खबर भरतपुर मे सूरजमल को मिली तो आग बबूला हो गये और बोले”अरे आंवे लोहागढ के जाट और दिल्ली मै मचा दो लूटम पाट” और दिल्ली पर चढाई करने तैयारि जल्दी करली गई एवं आज जहाँ गुडगांव बसा हुआ है वहाँ अपना डेरा डाल दिए और एक सैनिक को बोले कि बादशाह को कहो जाट बहादुर आए है तो बादशाह भी अपनी सेना ले के मैदान मे आता है और युद्द होने लगता है
याद दिलाना चाहता हूँ कि बादशाह कि शर्त के मुताबिक रानी हिँडोली भी युद्द मे गई थी लेख बहुत बडा है भाइयो शॉर्ट में लिख रहा हुँ
तो कुछ ही देर मेँ मुगलोँ के छक्के छूट गए और बादशाह को चाल सुझी एवं सूरजमल के पैरोँ मेँ गिरके गिडगिडाने लगा और गाय कि शौगंध महाराजा को खिलाने लगा सूरजमल का ह्रदय पिगल गया और युद्द समाप्त हो गया हरजौत कि शादि सूरजमल ने अपने र्खचे से कराई
बादशाह ने महाराजा को बोला कि अब हमारि लडाई नाहै सो कुछ दिन दिल्ली मेँ ही रहो लालकिले मे रहने का इंतजाम है सूरजमल चाल को ना समझ पाए और एक दिन जब महाराजा घूमने नदी के किनारे निकले तो धोके मार दिया गया और बादशाह ने अपनी औकात दिखादि
फिर बाद मेँ पुत्र जवाहर सिहँ ने दिल्ली को जीता जिसकि याद मेँ आज भी जवाहर बुर्ज भरतपुर मेँ बनवाया गया जिसपर वंशजो का राजतिलक होता था
महाराजा सूरजमल के बारे में कुछ और बातेंः
महाराजा सूरजमल भरतपुर के जाट राजा थे. उन्हें जाट जनजाति का प्लेटो और जाट यूलिसिस कहा जाता है. उन्होंने 80 युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे
25 दिसम्बर, 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हुए युद्ध में गाजियाबाद और दिल्ली के मध्य हिंडन नदी के तट पर महाराजा सूरजमल ने वीरगति पायी। उनके युद्धों एवं वीरता का वर्णन सूदन कवि ने ‘सुजान चरित्र’ नामक रचना में किया है। महाराजा बदनसिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र महाराजा सूरजमल जाट 1756 ई. में भरतपुर राज्य का शासक बना
महाराजा सूरजमल ने 80 युद्ध लड़े एक भी नहीं हारे और युवाओं को बता दूं हमने मुगलों को हराया, हमने अंग्रेजों को हराया ऐसा इतिहास में कोई नहीं कर पाया
–महाराजा सूरजमल की जयपुर के महाराजा जयसिंह से अच्छी मित्रता थी। जयसिंह की मृत्यु के बाद उसके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में गद्दी के लिए झगड़ा हो गया। – सूरजमल बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह के, जबकि उदयपुर के महाराणा जगतसिंह छोटे पुत्र माधोसिंह के पक्ष में थे।
चंडौस युद्ध
चंडौस युद्ध, महाराजा सूरजमल के करियर की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो 1745 में हुई थी जब दिल्ली के मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने कोइल ( अलीगढ़ ) के नवाब फतेह अली खान को नाराज़ कर दिया था । उसे दंडित करने के लिए, बादशाह ने एक अफ़गान सरदार, असद खान को भेजा। फतेह अली खान ने सूरजमल की मदद मांगी और नवंबर 1745 में, उन्होंने बाहरी राजनीतिक और सैन्य मामलों में अपना पहला स्वतंत्र निर्णय लिया। सूरजमल ने फतेह अली खान को मदद का आश्वासन दिया और अपने बेटे की कमान में एक सेना भेजी। चंडौस के युद्ध के परिणामस्वरूप असद खान की मृत्यु हो गई और शाही सेना की हार हुई, जिससे भरतपुर साम्राज्य की शक्ति बढ़ गई।
बगरू का युद्ध (अगस्त, 1748)
महाराजा सूरजमल के जयपुर के राजा जयसिंह से अच्छे संबंध थे । जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में गद्दी को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। महाराजा सूरजमल ईश्वरी सिंह को अगला वारिस बनाना चाहते थे, जबकि महाराणा जगत सिंह माधोसिंह को राजा बनाना चाहते थे। यह लड़ाई तब तक चलती रही जब तक मार्च 1747 में ईश्वरी सिंह की जीत नहीं हो गई। माधोसिंह मराठों, राठौरों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ वापस लौट आए और राजा सूरजमल ने 10,000 सैनिकों के साथ ईश्वरी सिंह का साथ दिया। ईश्वरी सिंह ने लड़ाई जीत ली और जयपुर का राजपाठ हासिल कर लिया।
जाटों के प्रमुख गोत्र
कुछ जाटों की प्रमुख गोत्र और उनके बहुल क्षेत्र सिद्धू गोत्र पंजाब का बहुत बड़ा गोत्र है पश्चिमी उ०प्र० अमरोहा, हापुड जिलों में भी काफी गांव है | मान गोत्र भी पंजाब, हरियाणा और दिल्ली का बहुत बड़ा गोत्र है | बेनीवाल राजस्थान का महत्त्वपूर्ण गोत्र है हरियाणा और पश्चिमी उ०प्र० में भी काफी गांव है | सांगवान हरियाणा और पश्चिमी उ०प्र० का काफी नामी गोत्र है | मलिक (गठवाला) गोत्र भी काफी बड़ा गोत्र है | अहलावत गोत्र हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उ०प्र० का काफी बड़ा गोत्र है इस गोत्र का हरियाण ा के चौधरी अलग और पश्चिमी उ०प्र० से चौधरी अलग है राजस्थान में भी इस गोत्र के काफी गांव है झूंनझूनू से M.P संतोष अहलावत- इसी गोत्र से हैं | बालियान गोत्र मुजफ्फरनगर पश्चिमी उ०प्र० की मुख्य गोत्र है इस गोत्र के लोग खाटी और मेहनतकश होते हैं | तोमर गोत्र के गांव हरियाणा और पश्चिमी उ०प्र० दोनों राज्यों में काफी संख्या में हैं बडौत क्षेत्र में इनके गांवों की संख्या 84 हैं और इस गोत्र के गांव भी काफी बड़े है ब्रज क्षेत्र में अग्र चौधरी , नौहवार , ठेनुआ , ठुकरेले , चाहर और कुन्तल प्रमुख …
Jat Regiment Interesting Facts | जाट बलवान , जय भगवान ।
जाट रेजीमेंट के बारे मे रोचक तथ्य Jat Regiment Interesting Facts स्थापना वर्ष : 1795 आदर्श वाक्य : “ संगठन व वीरता ” युद्धघोष : “ जाट बलवान जय भगवान ” मुख्यालय : बरेली, उत्तरप्रदेश आकार : 23 बटालियन जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक इंफेंट्री रेजिमेंट है और भारत में सबसे पुरानी और सबसे अधिक पदक प्राप्त करने वाली रेजीमेंट में से एक है। अपने 200 से अधिक वर्षों के जीवन में, रेजिमेंट ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध सहित भारत और विदेशों में अनेक युद्धों में भाग लिया है। सन 1839 से 1947 के बीच यह रेजिमेंट 9 वीरता , 2 विकटोरिया और 2 जॉर्ज पुरस्कारों के साथ 41 युद्ध सम्मान प्राप्त कर चुकी है । जाट रेजिमेंट के पास 2 अशोक चक्र , 35 शौर्य चक्र , 10 महावीर चक्र , 2 विक्टोरिया क्रॉस , 2 जॉर्ज सम्मान , 8 कीर्ति चक्र , 39 वीर चक्र , और 170 सेना पदक भी शामिल हैं । ये काफी पुराने आंकड़े है इसलिए नए आंकड़ो के अनुसार जाट रेजिमेंट के पास इनसे भी ज्यादा पदक है । इस रेजिमेंट में मुख्यतः पश्चिमी उत्तरप्रदेश , हरियाणा , राजस्थान और दिल्ली के हिन्दू जाटों की भर्ती की जाती है ।..