Wednesday, July 23, 2025

संबल योजना में दिखावा या राहत? — ऑनलाइन न हो पाने से फंसे सैकड़ों आवेदन, कलेक्टर के सामने भी नहीं सुधर रहा सिस्टम लंबे समय से सॉफ्टवेयर एरर, जनसुनवाई में निराकरण सिर्फ कागज़ों तक सीमित

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श्योपुर, 08 जुलाई 2025
मुख्यमंत्री जनकल्याण संबल योजना का लाभ दिलाने के दावे प्रशासन द्वारा लगातार किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।

जनसुनवाई में तो तीन हितग्राहियों को दो-दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि स्वीकृत किए जाने की बात सामने आई—

  •  श्रीराम आदिवासी (पत्नी स्व. श्रीमती सौमेशी आदिवासी)

  • श्रीमती संतोष बाई (पति स्व.  सत्यनारायण मित्तल)

  •  पवन प्रजापति (पिता स्व.  ओमप्रकाश प्रजापति)

साथ ही कु. शिवानी जाट एवं रोहित बैरवा के आवेदनों को मौके पर ही ऑनलाइन करने की कार्यवाही भी दर्शाई गई।

लेकिन सवाल यह उठता है कि जब लेबर डिपार्टमेंट के कंप्यूटर ऑपरेटर स्तर तक मामला पहुंचकर भी “सॉफ्टवेयर एरर” की वजह से फॉर्म ऑनलाइन नहीं हो रहे, तो यह प्रक्रिया कैसे संभव हो रही है?

सूत्रों के अनुसार, कई महीनों से पोर्टल की तकनीकी खराबी के कारण आवेदन अटके हुए हैं। न ही अधिकारियों ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया है, और न ही वरिष्ठ अधिकारियों का इस तकनीकी गड़बड़ी पर ध्यान गया है।

जनसुनवाई में निराकरण—सिर्फ औपचारिकता?

जनसुनवाई में आने वाले अनेक आवेदनों का निराकरण सिर्फ कागज़ी कार्रवाई तक सीमित नजर आ रहा है। कई पीड़ित परिवारों ने बताया कि वे हर बार सुनवाई में पहुंचते हैं, लेकिन या तो आवेदन ऑनलाइन नहीं हो पाता, या स्वीकृति के नाम पर उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता है।

एक पीड़ित ने बताया,

“हर बार फॉर्म भरवाने के नाम पर कलेक्टर साहब के सामने मामला जाता है, लेकिन अंत में हमें यही बताया जाता है कि पोर्टल नहीं चल रहा। क्या इसी को निराकरण कहते हैं?”

ज़रूरत है ज़मीनी हकीकत देखने की

अब यह स्पष्ट हो गया है कि यदि सॉफ्टवेयर एरर के कारण फॉर्म ही ऑनलाइन नहीं हो पा रहे, तो प्रशासन को पारदर्शिता बरतते हुए इसकी जिम्मेदारी तय करनी चाहिए।

जनता अब सवाल कर रही है—

. पहले तो सरपंच और सचिव मिलकर हितग्राही काम नहीं करते जब
तक उनसे कुछ परसेंट देने की बात नहीं हो जाती 
  • क्या संबल योजना वास्तव में गरीबों के लिए है या सिर्फ आंकड़ों और प्रेस नोट्स में राहत पहुंचाने का माध्यम बन गई है?

  • जब सिस्टम ही नहीं चल रहा, तो मंजूरी की प्रक्रिया कैसे दिख रही है?

  • क्या ये निराकरण सिर्फ “शो पीस” बनकर रह गए हैं?

अब उम्मीद जिलाधीश से

जिला प्रशासन को चाहिए कि वह तकनीकी खामियों पर तत्काल संज्ञान ले और लेबर डिपार्टमेंट के अधिकारियों से जवाबतलबी करे। जिलाधीश अर्पित वर्मा से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस गंभीर विषय पर केवल मंचीय समाधान नहीं, बल्कि जमीनी कार्रवाई करें।

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