1000 से 5000 रुपये की ‘फीस’ नहीं दी, तो बाबू छूते भी नहीं कागज़!
बिना रिश्वत के नहीं होता कोई काम!
गाड़ी ट्रांसफर हो या नया रजिस्ट्रेशन, बिना ₹1000 से ₹5000 के ‘नगद चढ़ावे’ के कोई काम नहीं होता। बाबू कागज़ तक नहीं छूते, दलालों के बिना काम नहीं चलता।
क्या यह लोकतंत्र है? भ्रष्टाचार का विरोध करें!
श्योपुर, दिनांक 2/5/25
जिला परिवहन कार्यालय श्योपुर अब सरकारी नहीं, दलालों की जागीर बन चुका है। चाहे वाहन का रजिस्ट्रेशन हो या ट्रांसफर, आम जनता को काम करवाने के लिए 1000 से 5000 रुपये की ‘नगद चढ़ावा’ चढ़ाना पड़ता है। अगर आप सोच रहे हैं कि सीधे दफ्तर जाकर ईमानदारी से कागज़ जमा करा देंगे — तो माफ कीजिए, बाबू आपको घास भी नहीं डालेंगे!
सूत्रों की मानें तो कई बार बाबू लोग जानबूझकर फाइलें लटकाए रखते हैं ताकि लोग थक हार कर दलालों का रुख करें। और अगर कोई व्यक्ति इस दलाली के चक्रव्यूह में न फंसे, तो उस पर ‘सरकारी कार्य में बाधा’ जैसी धाराएं लगाने की धमकी भी दी जाती है।
वीडियो वायरल, फिर भी कार्रवाई शून्य!
कुछ समय पहले आरटीओ विभाग के अधिकारी का रिश्वत लेते हुए वीडियो वायरल हुआ था। हैरानी की बात ये रही कि रिश्वतखोरी कार्यालय में नहीं, एक किराए के मकान में हो रही थी। जवाब में दावा किया गया कि “बसों के चालान का पैसा जमा किया जा रहा था” और वीडियो बनाने वाले पर ब्लैकमेलिंग का आरोप तक लगा दिया गया।
इस मामले में कुछ पत्रकारों ने वीडियो बनाने वाले शख्स के खिलाफ देहात थाने में आवेदन तक दे डाला और उसे घंटों थाने में बैठाए रखा गया। आखिर में दबाव बनाकर वीडियो डिलीट भी करवा दिया गया।
“मैं खुद महीनों से फंसा हूं” — वरिष्ठ कांग्रेस नेता का खुलासा
RTO कार्यालय में काम कराने बाले कांग्रेसी नेता महावीर सिंह गौड़ का बयान खुद विभाग की हकीकत बयां करता है। उन्होंने बताया, “मैं विभाग में जन सेवा करता हूं, फिर भी अपना निजी काम महीनों से नहीं करवा पा रहा, क्योंकि मैंने किसी को रिश्वत नहीं दी। पूरा ऑफिस दलालों के इशारे पर चल रहा है।”
उन्होंने विशेष रूप से संतोष माहौर नामक बाबू पर आरोप लगाए कि वो दिनभर दलालों के चैंबरों में बैठते हैं और आम नागरिकों की फाइलें देखना तक गंवारा नहीं करते।
जब हमारी टीम ने माहौर जी से इस विषय में प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने कहा — “मुझसे मत बात करो, अधिकारी से लो बाइट, फिर पेपर में छापो।”
सवाल उठता है
क्या श्योपुर परिवहन कार्यालय अब जनता का नहीं, दलालों का केंद्र बन गया है?
कब तक आम आदमी यूं ही फाइलों में पिसता रहेगा?
क्या जिम्मेदार अधिकारी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाएंगे या फिर एक और मामला दबा दिया जाएगा?